थल सेना दिवस – रामकिशोर पाठक

सीना तानकर जो खड़े, देश हित दिन रात में।
सो रहे हैं चैन से हम, परिजनों के साथ में।
तिरंगा सदा लहर रहा, छूता जो आसमान है।
इनसे जन-गण भारत का,यही हमारा सुगान है।

आठों प्रहर हैं जो सजग, धूप अथवा छाँव में।
निर्भय हो हम घूम रहें, शहर हो या गाँव में।
चट्टानों-सा अडिग सदा, सीमा पर जवान हैं।
दुश्मन से टकरा जाते, बनकर एक तूफान हैं।

रुकना कभी सीखा नहीं, ऑंधी व तूफान में।
अपना हर साँस लगाया, जो देश के सम्मान में।
मातृभूमि की रक्षा खातिर, दे दिया भी जान हैं।
हरपल हीं इन वीरों से,अटल हिंदुस्तान हैं।

वीरों के इस धरती की, यही सच्चे शेर हैं।
चुटकियों में करते सदा, दुश्मनों को ढेर हैं।
हो सागर-सी खाईं तो, खुद बने तूफान हैं।
सीमा को अक्षुण्ण रखें, त्याग अपनी जान हैं।

हमें हमारी सेना पर, स्वयं से अधिक गर्व है।
थल सेना दिवस मनाएँ, जैसे एक पर्व है।
शीश झुकाएँ वंदन में, ये देश की शान हैं।
इनके दम पर हीं पाठक, वतन हिंदुस्तान हैं।

राम किशोर पाठक
प्राथमिक विद्यालय भेड़हरिया इंगलिश पालीगंज, पटना

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