तन-मन-धन अर्पित करे, रखकर स्वच्छ विचार।
पाठक नित करते रहे, जन-जन का उपकार।।
वाणी ऐसी बोलिए, करें नहीं हलकान।
घाव हृदय को दे नहीं, बनकर एक कृपाण।।
दीप जले जब ज्ञान का, मिटता है अज्ञान।
मंजिल भी पाकर रहे, रोके नहीं थकान।।
सबको अनबन है यहॉं, करता खुद की शान।
ताल तलैया भी रखे, नदियों-सी पहचान।।
अड़चन बना विवाह में, मॉंगा गया दहेज।
मूल्य गिरा परिवार का, पूर्वज रखे सहेज।।
अड़चन तो हर ओर है, विरले करते जंग।
आमलोग बस कोसते, हरपल रहते तंग।।
अनबन-अड़चन बुद्धि को, करे सदा हलकान।
मूरख मद में बैठकर, पाए नहीं निदान।।
सर्दी पड़ती देखकर, कम्बल लिए खरीद।
मिले ओढ़ने को नहीं, बने पड़ोस मुरीद।
करती दवा इलाज भी, दुआ रहे जब साथ।
जब किसी का हाय लगे, सब रह जाए हाथ।।
माया-ममता-मोह को, दीजिए नहीं स्थान।
तीनों जीवन शत्रु है, करे सदा हलकान।।
तुलसी पूजन कीजिए, जो दे लाभ अनेक।
वात-पित्त कफ कर शमन, हरे दोष हर-एक।।
राम किशोर पाठक
प्राथमिक विद्यालय भेड़हरिया इंगलिश
पालीगंज, पटना