है महाकुंभ स्नान का, वेदों में गुणगान।
अमृत स्नान बेला सुखद,करे तेज प्रदान।।
त्रिवेणी जल प्रयाग का, मन से करिए स्पर्श।
सकल रोग नाशिनी यह, करिए नहीं विमर्श।।
तन-मन पावन कारिणी, सुरसरि जगत प्रसिद्ध।
प्रयागराज स्नान शुभद, सदियों से है सिद्ध।।
मनोमल परित्याग हीं, स्नान कराए ज्ञान।
स्नान सुफल होता तभी, महाकुंभ का मान।।
रूप प्रकृति का रम्य है, दिखाता तीर्थराज।
अमृत स्नान संयोग से, करता सकल समाज।।
त्रिपथगामिनी मिल गयी, यमुना जी की धार।
सरस्वती भी संग में, करती नित उद्धार।।
सृष्टि रचयिता ने किया, यज्ञ यहीं शुरुआत।
माधव द्वादश रूप में, तीर्थ बसे साक्षात।।
गेह ऋषि भारद्वाज का,भव्य त्रिवेणी धाम।
राम यहॉं आशीष ले, किए सफल हर काम।।
देखो तीर्थराज प्रयाग,अद्भुत मनहर धाम।
मिला यहॉं हनुमान को, सुखदायी आराम।।
लगता बारह वर्ष पर, कुंभ यहॉं हर बार।
महाकुंभ सौभाग्य से, मिले एक हीं बार।।
रामकिशोर पाठक
प्राथमिक विद्यालय भेड़हरिया इंगलिश पालीगंज,पटना