द्विगुणित सुंदरी छंद
सबका बोझ उठाना, करना नहीं बहाना।
अपना दर्द छुपाना, हर पल ही मुस्काना।।
सबका शौक पुराना, उफ्फ नहीं कर पाना।
संघर्ष की कहानी, नहीं सुनाना जाना।।
हाथ रहे जो खाली, लेकिन नहीं बताना।
कष्टों को खुद झेले, वादा सभी निभाना।।
खुद रातों को जागे, परिजनों को सुलाना।
रहकर भूखा-प्यासा, सबकी भूख मिटाना।।
जूते फट जो जाते, नया नहीं फिर लाना।
अपने लिए सदा ही, बहाने भी बनाना।।
कह दे बच्चा कोई, कर्जा लेकर आना।
अग्रिम वेतन पाया, सबको कह इठलाना।।
मौसम त्यौहारों का, रहता आना जाना।
कपड़े जो फट जाऍं, कुछ दिन काम चलाना।।
अवसर जब भी आए, सबको नया दिलाना।
बच्चें मौज उड़ाएं, पड़े काम पर जाना।।
थके हुए घर आना, सबका साथ निभाना।
पीर समंदर जैसा, अंदर हीं दफनाना।।
थामें रखना बाहें, कंधे पर बैठाना।
अपने लिए न मांगे, सबकी भजन लगाना।।
कभी प्यार की बातें, कभी सख्त हो जाना।
खुद को सदा भुलाना, सबमें खुद को पाना।।
अंदर – अंदर रोना, बाहर हॅंसी दिखाना।
पिता सहज है होना, कठिन पिता बन पाना।।
रचयिता – राम किशोर पाठक
सियारामपुर पालीगंज पटना बिहार