प्रकृति का संदेश – सुरेश कुमार गौरव

Suresh-kumar-gaurav

छन्द मुक्त

चलो चलें उस शांत वन में,
जहाँ बसी है प्राण धुन में।

पत्तों की बोली बह रही है,
हरियाली के मृदु जतन में।

नदी गुनगुन गीत कहती है,
सागर छिपा है हर कण में।

पक्षी गाते प्रीति की भाषा,
गूंज उठे स्वर ग्राम-गण में।

धरती माँ की सांसें चलतीं,
जैसे दीपक हर जीवन में।

किसने देखा दर्द उसका,
छिपा जो मिट्टी के तन में?

मानव! अब भी वक्त शेष है,
बचाओ मूल प्रकृति-धन में।

प्रकृति नहीं है मात्र साधन,
यह माँ सम है हर जन में।

@सुरेश कुमार गौरव, प्रधानाध्यापक, उ.म.वि.रसलपुर, फतुहा, पटना (बिहार)

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