आओ मिल हम गायें सब गीत,
है प्रेम की रीत सुहावनी भाई।
प्रेम की शक्ति अपार सुनो,
इस शक्ति से पार न दूजो है पाई।।
ढाई है आखर प्रेम सुनो,
कोई और न मंत्र सुनें रघुराई।
सेवरी के कोई काहि कहै,
जहाँ जूठन बैर खाये रघुराई।।
प्रेम की शक्ति से कान्हा हुए,
बस में कहो धाइ सुदामा बुलाई।
नयनन से बहे लोर कपोल पे,
पैर पखारि रहे हैं कन्हाई।।
प्रेम के बस में है सृष्टि ये सारी,
है प्रेम बिना कबहिं कछु नाहीं।
मीरा दुलारी तो जोगन प्रेम में,
प्रेम में राधा भईं जग जानी।।
प्रेम बिना कछु नही जग जानो,
प्रेम बिना कोई पिय की न प्यारी।
प्रेम नचावत देव ऋषि प्राणी को,
प्रेम की शक्ति चराचर जानी।।
प्रेम ही जीवन मूल है, प्रेम ग्रंथन के सार।
प्रेम बिना कहीं कछु नहीं, जानत सकल जहान।।
स्नेहलता द्विवेदी ‘आर्या’
उत्क्रमित कन्या मध्य विद्यालय शरीफगंज, कटिहार