बुद्धं शरणं गच्छाम:।
संघं शरणं गच्छाम:।।
चत्वारि आर्यसत्यानि,
जीव जीवने संगानि,
दु:खं, दु:खस्य कारणं वा,
निरोधं, निरोधगामिनीं प्रतिपदा।
बुद्धं शरणं गच्छाम:।
संघं शरणं गच्छाम:।।
अहिंसा, अस्तेय, कामेच्छा वर्जनम्,
अनृतं च त्यजेत् व्यसनम्।
पंचशीला: प्रबोधन्ते।
जना: सुखं भोगयन्ते।।
बुद्धं शरणं गच्छाम:।
संघं शरणं गच्छाम:।।
सम्यक दृष्टि, संकल्पं,
वाक्, कर्म च जीविका,
व्यायाम, स्मृति, समाधिर्नाम्
प्रज्ञा, शील प्रबोधका:।
अष्टांगयोग सेवन्ते।
मध्यमार्गी भविष्यन्ते।।
बुद्धं शरणं गच्छाम:।
संघं शरणं गच्छाम:।।
रचनाकार: – राम किशोर पाठक:
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