यह चिड़िया कहाँ रहेगी – संजय कुमार

बोलो अब मैं कहाँ रहूँगी
बच्चे मेरे कहाँ रहेंगें
आती है हम सब से कहने
अपनी चीं चीं मधुर आवाज में
कभी कभी यह मधुर कलरव से
जैसे शिक्षक समझाते हों
फिर चिल्लाती करकस भाव में
जैसे हमसे झगड़ रही हो
पेड़ों को जो काट रहे हो
बोलो अब मैं अब कहाँ रहूँगी ।

वन फुलवारी काट काट कर
आसियां जो तुमने बनवायी है
ऐसे में तुम सांस लेने को
शुद्ध वायु कहाँ से ला पाओगे
पेड़ों को जो तुमने काटा
उससे मेरे घोंसले टूटे
चूजे निकलने से ही पहले
उससे मेरे अंडे फूटे
मेरे बच्चे कहाँ रहेंगे
बोलो अब मैं कहाँ रहूँगी ?

अपनी चीं चीं मधुर कलरव से
पूछ रही है चिड़िया हमसे
नदियों और झरनों को मारकर
कंक्रीटों के तुम ऊगा के जंगल
ऐसे में जब प्यास लगेगी
कहाँ से जल तुम शुद्ध लाओगे ?
पेड़ों को जो काट रहे हो
बोलो अब मैं कहाँ रहूँगी ?
ऐसा तेरे साथ बीतेगा
बताओ तुमको लगेगा कैसा
बोलो तब तुम कहाँ रहोगे ?

अब यह चिड़िया कहाँ रहेगी
बोलो चिड़िया कहाँ रहेगी ?

<strong>संजय कुमार

जिला शिक्षा पदाधिकारी
अररिया।

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