रोको! रोते भगवान हैं – उज्जवला छंद – रामपाल प्रसाद सिंह ‘अनजान ‘

रोको!रोते भगवान हैं।।


मात पिता मेरे पास हैं।
रखते वे मुझसे आस हैं।।
कहते हैं वे ऐसा करो।
सचमुच लांछन से डरो।।

गहराई लेकर बोलते।
शब्दों को वे हैं तोलते।।
अस्सी बसंत अनुमान हैं।
बीते कल के प्रमाण हैं।।

माता-पिता शुभाकाश है।
फैला जिनसे प्रकाश है।।
अनुभव के उनके हाथ हैं।
जो पड़ते मेरे गात है।।

वे हैं अब भी पुचकारते।
अच्छाई को स्वीकारते।।
बाधा कोई जब आ पड़े।
होते सबसे आगे खड़े।।

लगते हैं ऊॅंच पहाड़-सा।
टलते रहते हैं हादसा।।
जाऍंगे धरती छोड़ते।
दयावान सबको जोड़ते ।।

पेड़ बड़ा छायादार है।
शुभ भविष्य का आकार है।।
कुछ वर्षों से नव हो रहा।
घर छोड़ मुसाफिर रो रहा।।

पर यह देखा अब जा रहा।
पुत्र ही खींचकर ला रहा।।
राह अनाथालय जा रही।
दुनिया को ऑंसू ला रही।।

मजबूरी के हम दास हैं।
ला पाए नहीं सुवास हैं।।
संयुक्त परिवार भार है।
बिखरे रहना संस्कार है।।

किस पर आयद यह दोष है।
किस पर बढ़ता यह रोष है।।
कहते सब तो कुछ हैं यहाॅं।
फिरते सब तो जाते वहाॅं।।

ये पकड़े रोग असाध्य हैं।
रह गए नहीं आराध्य हैं।।
बढ़ती दुनिया”अनजान”हैं।
रोको!रोते भगवान हैं।।


रामपाल प्रसाद सिंह ‘अनजान’
प्रभारी प्रधानाध्यापक मध्य विद्यालय दर्वेभदौर
प्रखंड पंडारक पटना बिहार

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