लोरी: ममता की मीठी छाया
चंदा मामा पास बुलाते, तारे झिलमिल झूला झुलाते,
माँ की गोदी, प्यार की बूँदें, सपनों में रसधार बहाते।
दादी नानी मीठी बोली, कथा-कहानी रोज सुनाती,
पलक झपकते नयनों में वो, नींद भरी मुस्कान जगाती।
पंखुड़ियों से हल्की बाती, बयारों में मधु-मिलन सुनाती,
लोरी बनकर स्मृति में उतरी, बचपन की तस्वीर सजाती।
नव जीवन का बीज यही है, संस्कारों की पहली थाती,
मन को गढ़ती, भाव सिखाती, भीतर सुधा-सुरभि बरसाती।
बाबा दादा छाँव बनाते, गीतों में वे प्राण बसाते,
ममता, त्याग, धैर्य की गाथा, हर पल लोरी में बुन जाते।
जो सीखा उस मीठे सुर में, वो शिक्षा बन साथ निभाती,
कभी विवेक, कभी संवेदना, बनकर जीवन राह दिखाती।
आज भले हों व्यस्त समय से, मोबाइल में खो जाते,
पर लोरी की छाँव न भूलो, जड़ से खुद को जोड़ बनाते।
चलो लिखें फिर एक कहानी, फिर से गाएँ लोरी प्यारी,
बचपन में भर दें उजियारा, मधुर सुरों की राग-दुलारी।
@सुरेश कुमार गौरव, प्रधानाध्यापक, उ.म.वि.रसलपुर, फतुहा, पटना (बिहार)