वसंत- शैलेन्द्र भूषण

पुलकित नवीन किसलय ले
नित कहता नयी कहानी
मानवता की दुर्दशा देख
उसकी भी खो गयी जवानी।

सुरभित पवन से करता फागुन
वसंत आगमन की तैयारी
लाल, पीले, नीले फूलों से
सजी हुई इसकी क्यारी।

करते हैं पशु नित कोलाहल
गाते वसंत के पक्षी गीत
वासंती गीतों को सुनकर
याद आते हैं मन के मीत।

पूछती मुझसे एक मधुबाला
छिपा कहाँ चंचल वसंत
निर्जन वन से जन-जीवन तक
कण-कण में है वह जीवंत।

निर्धन-धनी सब एक समान
सबको देता मीठी मुस्कान
नहीं कुछ भी उसको अशेष
मन-मन में जगाती एक शान।

आया वसंत मस्ती में डूबे
धनी,गरीब,भोगी और संत
जीवन देता मृतकों में भी
ऐसा वसंत आया अनंत।

करते हैं हम यह आराधना
तुम यों ही अमर बने रहना
हर मानवता के क्लेश नित्य
नवजीवन संचरित करना।

शैलेन्द्र भूषण
प्रधान शिक्षक
न. प्रा. वि. पकड़िया भूमिहारी टोला
प्रखंड-हरसिद्धि, जिला-पूर्वी चम्पारण

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