विश्व के धड़कन को तुम भी देख लो,
झाँक कर हृदय पटल में कर नमन,
श्रम की शक्ति को चलो सजदा करो।
पैर में छाले लिये वह हाथ को है खोलता,
तुम चढ़े अट्टालिका पर मौन कुछ न बोलता।
हर सृजन में है पसीना खून उसका जान उसकी,
मुस्कुराना व सहजता है यही पहचान उसकी।
विश्व के श्रम से ही सृजित विश्व का इतिहास यह है,
जल में , थल में और नभ में श्रम का तो साम्राज्य यह है।
है तुम्हें ऐ शत नमन योद्धा कि तुम हो सारथी,
सभ्यता के उन्नयन के सुर समर महारथी।
आज के दिन हम भी कुछ तो फर्ज अपना चल निभायें,
श्रद्धा का इक पुष्प वन्दन हम मिलें उनको बतायें।
आ मिलें हम इस धरा पर अलख श्रम का यूँ जलायें,
प्रात के अरुणिम छटा में आ श्रमोत्सव हम मनायें।
डॉ स्नेहलता द्विवेदी आर्या
उत्क्रमित कन्या मध्य विद्यालय शरीफगंज कटिहार