सुखी कौन ? – गिरीन्द्र मोहन झा

Girindra Mohan Jha

जो अपने दिन-रात व्यवस्थित कर ले, सुखी वही है।
जिसका मन फलाफल के प्रति संतुष्ट है, सुखी वही है।।
जो कभी न रुके, सतत बढ़ता जाए, सुखी वही है।
जिसका मन सदा कार्यरत हो, परम सुखी वही है।।
जो हर तरह की दुश्चिंता को जाने दे, सुखी वही है।
जो वर्तमान पर सदा अपना ध्यान केंद्रित करे, सुखी वही है।।
जो आत्मभाव में स्थित होकर रहे, स्थितप्रज्ञ होकर कर्म करे
सदा-सर्वदा सुखी वही है।
अपना कार्य करते हुए जो थोड़ा भी प्रभु का ध्यान करे, सुखी वही है।।
सदा सीखने की इच्छा रखने वाला सदा सुखी है।
जिसमें हो आत्मसंतोष सदा सुखी वही है।।
जो दूसरों की थोड़ी भी भलाई करे वह सदा सुखी है।
जो अपने कार्य से प्रेम करे, निरन्तर आत्मसुधार, आत्मप्रगति करने में व्यस्त रहे, वह सदा सुखी है।।
जो सदा रहे जागृत्, सतर्क, दुख को भी आनंद बना ले, वह सदा सुखी है।
जीवन के हर क्षण को खुशहाल बना ले, वह सदा सुखी है।।

गिरीन्द्र मोहन झा

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