सुनो-सुनो मजदूर हूँ मैं – मनु कुमारी

Manu Raman Chetna

सिर पर भारी बोझ उठाएँ।
दर्द सहें पर न घबराएँ।
दो जून की रोटी पर हीं ,
मन में रखता सबूर हूँ मैं।
सुनो-सुनो मजदूर हूँ मैं।।

संघर्ष की आग में खुद को जलाता,
वक्त की मार से मारा जाता ।
मेहनत कर बन कनक रूप ,
बन जाता मशहूर हूँ मैं।
सुनो- सुनो मजदूर हूँ मैं।

कभी खेती के काम मैं आता।
तन ढँकने को वस्त्र बनाता।
कुली रूप में स्टेशन पर ,
दिन रात दिखता जरूर हूँ मैं।
सुनो – सुनो मजदूर हूँ मैं।।

कचड़े का मैं ढेर उठाता।
सारे गंध मैं दूर भगाता।
स्वयं कष्ट सहकर इस जग को,
सुख देता भरपूर हूँ मैं।
सुनो- सुनो मजदूर हूँ मैं।।

फुटपाथ पर मैं हूँ सोता।
कभी हँसता कभी छुप-छुप रोता।
परिवार – बच्चों से वर्षों दूर,
रहने को मजबूर हूँ मैं।
सुनो-सुनो मजदूर हूँ मैं।।

मुझे नहीं अति धन की लालच।
ईमानदारी का बस रहे कवच।
संतोष, धैर्य के रूप में हर घर,
बन जाता कोहिनूर हूँ मैं।
सुनो-सुनो मजदूर हूँ मैं।।

मनु कुमारी
विशिष्ट शिक्षिका, मध्य विद्यालय सुरीगाँव, बायसी पूर्णियाँ , बिहार

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