स्वतंत्रता के दीवाने सुभाषचंद्र बोस
जिनके आदि का पता तो है,
पर अंत का पता नहीं,
किस हाल में यह घटित हुआ,
उसकी कोई खबर नहीं।
लक्ष्य उनका एक था,
आजाद भारतवर्ष हो,
देश को शीघ्र आजादी मिले,
यही देश का विमर्श हो।
कालजयी उदघोष उनका,
दिग्दिगंत घोषित हुआ।
उस काल में उस हाल में,
यह अति शोभित हुआ।
मैं तुझे आजादी दूँगा,
तुम मुझे खून दो।
आजादी प्राप्ति के लिए,
क्रांति कुछ नवीन दो।
क्रांति का यह अनुपम निनाद,
संपूर्ण जनमानस में गुंजित हुआ,
एक न चली अंग्रेज की,
उसका स्वप्न भी भंजित हुआ।
क्रांति के मसीहा वे,
देश के अग्रगण्य थे।
आजादी के अग्रदूत वे,
सचमुच ही मूर्धन्य थे।
देश की आजादी में,
नेता जी का अहम रोल था।
लक्ष्य केवल एक था ही,
और बिल्कुल सुस्पष्ट बोल था।
नेता जी की शान में,
जनता थी उलट पड़ी।
अंग्रेज को भगाने में,
चक्रव्यूह भी थी रच खड़ी।
वे ऐसे ही परम विभूति थे,
जो देश के आन-बान थे।
विदेश में हिंद सेना गठन से,
वे जन मानस के भी शान थे।
उनके सारे रगों में,
क्रांति का सुर था गूँजता।
थे आजादी के महानायक,
जन-जन भी उनको पूजता।
वे कर्त्तव्य के मिशाल थे,
भारत के दिव्य भाल थे।
अपने ही आचरणों से वे,
रत्नों के भी रत्न लाल थे।
उनकी सांगठनिक क्षमता भी,
अप्रतिम और महान थी।
उन्होंने देश के लिए जो किया,
उनके स्वाभिमान का बखान थी।
हम आज भी नमन कर रहे,
उनकी कृति के आलोक में।
पर अंत उनका पता नहीं,
यह सोचते अगाध शोक में।
अमरनाथ त्रिवेदी
पूर्व प्रधानाध्यापक
उत्क्रमित उच्चतर माध्यमिक विद्यालय बैंगरा
प्रखंड-बंदरा, जिला-मुजफ्फरपुर