सब में प्रभु का रूप समाया-दिलीप कुमार गुप्त

Dilip gupta

Dilip gupta

सब में प्रभु का रूप समाया 

झिलमिल तारों का श्याम व्योम
अवनि के वक्ष पर अवतरित हिम ओम
अथाह सिंधु की गहन गर्जना
प्रकृति की मनभावन रूप संरचना
सुगंधित पुष्प हिय कनक पराग
सघन तरूवर शीतल अनुराग
कड़वे नीम मृदुल गुणकारी
शीत उष्ण की छवि है न्यारी
प्रकृति का आँचल सबने है पाया
सब में प्रभु का रूप समाया।

प्रातः स्वर्णिम रवि का अभिनंदन
शाम ढले नन्हे दीप का वंदन
नदियों का कल-कल प्रवाह
मंद मंद समीर सुखद एहसास
झरने वन पंछी समृद्ध पशु धन
रेत माटी दलदल के सुन्दर वन
शैशव का निर्लिप्त गोपाल मन
अल्हड़ यौवन प्रबुद्ध संत जन
प्रकृति के आँचल में है सबकी काया
सब मे प्रभु का रूप समाया।

सुबद्ध पद्म में भ्रमर का गुंजन
घटाटोप से विह्वल मोर का नर्तन
पावस कलश से छलके पियूष
स्वाति है पपीहा का आयुष
नव प्रभात संग पंछी का कलरव
नव उड़ान नव जीवन का सिरजन
फल फूलों से लदे सुनहले उद्यान
अन्न धन से समृद्ध खेत खदान
प्रकृति ने अहर्निश प्रेम लुटाया
सब मे प्रभु का रूप समाया।

दिलीप कुमार गुप्त
मध्य विद्यालय कुआड़ी, अररिया

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