माँ दुर्गा-देव कांत मिश्र ‘दिव्य’

Devkant

माँ दुर्गा

दुर्गतिनाशिनी माँ दुर्गा की, होती जय-जयकार।
आदिशक्ति जगदंबा की है, महिमा अपरंपार।।

निर्मल मन से जग जननी के, करें विमल-गुणगान।
सद्विचार श्रद्धा अर्चन से, पाएँ शुभ वरदान।।
नेह भाव की पूजा से माँ, करती जन उद्धार।
आदिशक्ति जगदंबा की है, महिमा अपरंपार।।

चैत्र मास का पावन दिन है, रखना व्रत-उपवास।
ध्यान सदा हो अम्बे माँ पर, सुफलित हो विश्वास।।
माँ की चरण वंदना करती, सदा स्वप्न साकार।
आदिशक्ति जगदंबा की है, महिमा अपरंपार।।

करें नष्ट हम कलुष भाव को, लाएँ नित विश्वास।
हो परहित का भाव हृदय में, बढ़े नित्य उल्लास।।
शुचिमय सुंदर कर्म देखकर, करती माँ है प्यार।
आदिशक्ति जगदंबा की है, महिमा अपरंपार।।

श्रद्धामय पूजन अर्चन से , करती माँ कल्याण।
हर संकट में करती माता, भक्तजनों का त्राण।।
भक्त हृदय में हरपल माता, लाती खुशी बहार।
आदिशक्ति जगदंबा की है, महिमा अपरंपार।।

भाव-पुष्प नित मन में लेकर , करें मातु का ध्यान।
प्यार बढ़े प्राणी-प्राणी में, हो सबका उत्थान।।
नेह दृष्टि समता माँ देकर, करती सदा दुलार।
आदिशक्ति जगदंबा की है, महिमा अपरंपार।।

मानवीय-कल्याण मार्ग की, हो मन में तस्वीर।
यही भगवती माँ से विनती, रहूँ सदा मैं धीर।।
नारी का हो नित्य समादर, उपजे यही विचार।
आदिशक्ति जगदंबा की है, महिमा अपरंपार।।

देव कांत मिश्र ‘दिव्य’ शिक्षक,
मध्य विद्यालय धवलपुरा,
सुलतानगंज, भागलपुर,
बिहार

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