कर दे तू उपकार प्रकृति के साथ-सुरेश कुमार गौरव

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कर दे तू उपकार प्रकृति के साथ”(कविता)

✍️सुरेश कुमार गौरव

प्रकृति का अनोखा और अनुपम है ये उपहार,
पेड़-पौधे,नदी, मैदान, वन-जंगल और पठार।

फिर सूर्यताप, मिट्टी, हवा,जलश्रोत देती उर्वरा,
तब धरती हमारी दिखती, अति सुंदर वसुंधरा।

इस धरा का उपभोग करते रहे सदा मानव,
फिर भी बन जाते इसके लिए क्यूं ये दानव।

क्षितिज,गगन,समीर,वायु हैं हमारे प्राण दान,
प्रकृति ने दिया है कितना अच्छा यह वरदान।

फिर इसे नष्ट करने को, क्यों बेताब है इंसान,
प्रकृति प्रदत्त हम सब है, इसकी मानो संतान।

पर्यावरण संरक्षित करना है, बड़ा उपकार,
इसे किया जा रहा नष्ट,यह है घोर अपकार।

प्रदूषण फैलाकर करते, मानव अपना स्वहित
भूल जाते प्रकृति से ही सीखाया, करो परहित।

हे मानव! तुझसे मेरी विनती है ये बारंबार,
कर दे तू उपकार प्रकृति के साथ बारंबार।

लगने लगेगा प्रकृति अपने पूर्व रुप के जैसे,
तब बहारें आएंगी,पंक्षी गुनगुनाएंगे कुछ ऐसे।

प्रकृति का अनोखा वरदान हम, अच्छा सबसे,
प्रकृति से छेड़छाड़ मतलब,भारी दुश्मनी इससे।

प्रकृति का अनोखा और अनुपम है ये उपहार,
पेड़-पौधे ,नदी,मैदान, वन-जंगल और पठार।

फिर सूर्यताप,,मिट्टी,हवा,जलश्रोत देती उर्वरा,
तब धरती हमारी दिखती अति सुंदर वसुंधरा।

@सुरेश कुमार गौरव,शिक्षक,पटना (बिहार)
स्वरचित और मौलिक
@सर्वाधिकार सुरक्षित

सुरेश कुमार गौरव

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