सुखाड़ -जय कृष्णा पासवान

Jaykrishna

गगन मस्तक पर ना ओश की बूंदे।
” घटा की गर्जना ना करे पुकार ”
मेंढक झुंझुर सब बिछुप्त पड़ गये ,सावन बन गए जेठ आषाढ़।।
अब की महंगाई बना सुखाड़ ……………।।
आग बरसती है गगन से,
तपती वसुंधरा के तन-मन से।
“फूल और कलियां सब- मुरझा गई है”
भंवरे भी देखो शर्मा गये है।
डाल- डाल के पात- पात पर
करते हैं सब यही पुकार।।
अबकी महंगाई बना सुखाड़……………..।।
पानी भी देखो ज़हर हो गई है
रिश्ते नाते सब बेख़बर हो गये है ।
“गर्म हवा की वो सिसकियां”
जलती पीठ पर करे प्रहार।।
अबकी महंगाई बना सुखाड़ ………………. ।।
रो-रो कर सब बिलख रहा हैं
ढोल मंजीरा ना कोई झंकार।।
सुखी दरिया में नाव चल रहे,
लहरों पर साहिल भरे हुंकार।
अबकी महंगाई बना सुखाड़ ……………..… ।।
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जय कृष्णा पासवान
सहायक शिक्षक उच्च विद्यालय बभनगामा ,बाराहाट बांका।

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