एक कुत्ते की आत्मकथा-लवली कुमारी

एक कुत्ते की आत्मकथा

सुनो दोस्तों मेरी कहानी
है अनमोल मेरी जुबानी
छोटा सा प्यारा बच्चा था मैं 
चक्रवर्ती परिवार में जब आया था मैं 
बड़े लाड प्यार से पाला गया
नाम टाइगर मेरा रखा गया
घर का सबसे छोटा बेटा कहा गया
सबके आँखों का तारा भी माना गया
मस्ती से कटने लगी मेरी जिंदगी 
आशु भैया के साथ करता हुड़दंगी
बस अभी तो छः महीने ही हुए थे मेरे
कि अचानक तबीयत बिगड़े हमारे
फिर मेरा इलाज करवाया गया
लेकिन किस्मत को रास ना आया
अचानक फिर एक भयंकर बीमारी ने जकड़ी
जिसका अंदाजा मैं तो क्या किसी ने भी नहीं पकड़ी
एक ही दिन में सब कुछ बदल गया 
मैं अपने मालिक को ही भूल गया
खाना पीना सब छोड़ चुका था मैं 
मालिक के घर से भाग चुका था मैं 
पर मैं क्या जानू बाहर की दुनियाँ
बड़े-बड़े कुत्तों ने की मेरे साथ कुश्तियाँ
एक-एक कर सब लगे मुझे ढूंढने
लेकिन मैं उनको देख लगा भागने
गली-गली ढूंढकर मुझे सब हुए परेशान 
पर जब देखा मेरी गतिविधि तो वे हुए हैरान 
एक दिन पूरे घर से गायब रहा 
लेकिन मैं मालिक का आँसू भी देखता रहा 
इसलिए तो सुबह सुबह आकर संदेश दिया 
चुपके से घर पर जाकर दस्तक दिया 
देख मुझे सब प्यार से लगे बुलाने 
मैं तो बस अंतिम विदाई आया था लेने 
मन ही मन मैंने कहा मत आओ मेरे पीछे 
मैं तो समीप जा रहा हूँ मृत्यु की ओर खींचें 
अब आपसे दोस्ती कर कमजोर पड़ना नहीं तड़पता हुआ मुझे देख ना हो तकलीफ कहीं 
भगवान से बस मेरी यही शिकायत है 
क्यों नहीं मुझे इस दुनियाँ में रहने की इजाजत है
जब इतना तड़पा तड़पा कर मृत्यु तक पहुँचाना था 
तो क्यों इंसानों की बस्ती में मुझे लाया था 
कितने सारे जुल्मी ने दी जख्म शरीर पर 
मासूम चेहरा और मेरे लाचार हाथ पैर पर 
एक ओर था शरीर का कष्ट एक तरफ थी घनघोर बारिश 
लगा जैसे भगवान ने की थी मेरे साथ सारी साजिश 
अब ना कोई शिकायत शिकवा किसी से 
रहे सलामत मेरे मालिक की ये दुआ है रब से
मत आँसू बहाओ मेरे आशु भैया 
अगले जन्म में भी तुम ही रहोगे मेरे कन्हैया 
sit, stop, over, handshake जो पढ़ाया तुमने 
जब बहुत याद आएँगे तो चुपके से लगूँगा रोने 
चाह नहीं थी मेरी भी तो जाने की 
आ गया था हरि का बुलावा सब छोड़ जाने की 
अंतिम विदा ले रहा हूं आप सबों से मैं 
खुश रहना मेरे प्यारों अब जा रहा हूं मैं।

लवली कुमारी

उ. म. वि. अनूपनगर

बारसोई कटिहार

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