हे देश !

हे देश ! हे देश नमन मेरा तुझको तुमने मुझपर उपकार किया, माँ की ममता दी मिट्टी ने सरहद ने पिता का प्यार दिया। गंगा-यमुना सी बहनें दी एक समृद्ध…

जाओ न तुम दिसंबर-डॉ. अनुपमा श्रीवास्तवा

जाओ न तुम दिसंबर यूं न तुम जाओ दिसंबर, उदास है धरती और अंबर। मौन हैं चारों दिशाएं कांपती चल रही हवाएं। कोहरे का चादर ओढ़कर, उम्मीद सबका तोड़कर। मांगों…

कारागृह की वेदना-डॉ. अनुपमा श्रीवास्तवा

  कारागृह की वेदना करुण” क्रंदन से “कारागृह”     कांप उठा वह कक्ष-निरीह, “काल” ने कैसा खेल रचा      कोठरी में था हाहाकार मचा।    मौन “कोठरी” सब…

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