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अम्बेडकर सम्मान- जयकृष्ण पासवान

Jaykrishna

जीवन के अंधकार डगर में,
सूरज संग ज्योत जगाई है।
अधिकार, साहस का पूंजी,
देकर आत्म सम्मान दिलाया है।।
गरल थे हम इस धरा पर,
मानव बन पशु समान ।
राजा सब अधिकार छीन,
बन बैठा था भगवान ।।
जिसका कोई मोल नहीं ।
पत्थर को मनी बनाई है।।
ज्ञान सागर में हमें डूबोकर
हमसबको अमृत पिलाई है।।
जीवन के अंधकार डगर में,
सूरज-संग ज्योत जगाई है।
दबे-कुचले लोग समाज के,
ना जाने कितने अपमान सहे।
पग-पग लुटा अस्मत इनकी,
कितनी जानें कुर्बान कीए।।
धधक उठा शोषण मानव का,
हाथों में संविधान लीए।।
ख़ाक हो गई सब कुरीतियां,
बाबासाहेब को बड़ी दुहाई है।
मन के इरादों को पूरी करके,
गुलशन में फूल खिलाई है।
जीवन के अंधकार डगर में,
सूरज संग-ज्योत जगाई है।।
“पैरों की जंजीर तोड़कर ”
उन्मुक्त गगन में पंख दिए।
अस्पृश्यता जैसी कु-प्रथा को
गांव समाज से दूर किए ।।
मानव-मानव में वैर नहीं।
समानता का पाठ पढ़ाया है।।
जीवन के अंधकार डगर में,
सूरज संग ज्योत जगाई है।।
सभी धर्मों की डोर कटी,
मस्तक पर मुकूट पहनाया है।
बाबा साहेब के धारदार-
कलम से भारत का स्वाभिमान बढ़ाया है।।
कौवे की तरह कांव-कांव थी जिंदगी”
कोयल की तरह आवाज़ दिलाई है”
जीवन के अंधकार डगर में,
सूरज संग ज्योत जगाई है।
अधिकार साहस का पुंजी देकर आत्म सम्मान बढ़ाया है।।


संविधान दिवस के उपलक्ष्य में प्रस्तुत है ये कविता जयकृष्ण पासवान स०शिक्षक उच्च विद्यालय बभनगामा बाराहाट बांका

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