समाज की बलि नित्य बनती है औरत!
क्या समाप्त हो गई इसकी जरूरत?
श्रद्धा से प्रेरणा पा
“मनु’ को आई जागृति,
नारी समाज के दामन से
जुड़ी भारत की संस्कृति।
नारी थी सीता-सावित्री
नारी ही अहिल्या-तारा है,
इसी की ओट पाकर
चलता समाज हमारा है।
नारी को त्याग चले थे “बुद्ध’
पाने जीवन का तत्व ज्ञान,
लेकिन सुजाता की खीर ने
बनाया उनको “बुद्ध महान’।
नारी माता, भगिनी है
सृष्टि आंचल में सोती है,
ममता के बदले दुनिया क्यों
कांटे उसे चुभोती है?
नर के विकास में नारी की
अहम भूमिका होती है,
नारी समाज की ज्योति है
हर पल बिखेरती मोती है।
क्षीर पान कराती सबको
खुद दु:सह वेदना सहती है,
तनय की पलकें चूम-चूम
उसकी पीड़ा को हरती है।
कभी गमों के सागर से
निजात नहीं नर पाता है,
नारी की एक छोटी मुस्कान
आशा की ज्योति जगाता है।
नारी थी लक्ष्मीबाई, इंदिरा
मर्दों से बढ़कर काम किया,
एक ने सिंहासन ठुकराई
दूसरे ने जीवन दान दिया।
रण हो या की राजनीति
हर क्षेत्र में योगदान किया,
जब आई अखंडता की बारी,
उसने अपना जीवन दान दिया।
नारी केवल अर्धांगिनी नहीं
नारी सर्वांगीणी होती है,
पुरुष इससे संबल पाता
नारी वीरांगना होती है।
जीवन रूपी गाड़ी में
नारी चक्के की धूरी है,
क़दम क़दम पर साथ चलना,
इसका होता बहुत जरूरी है।
दिन दूर नहीं जब पुरुष समाज
दाँतों तले अंँगुली दबाएगा,
नारी के एक-एक जौहर को
वह देख कर दंग रह जाएगा।
जिस दिन नर स्वार्थ त्याग
नारी का सम्मान लौटाएगा,
उसे दिन अमर हो दुनिया में
नर फिर महान बन जाएगा।
जैनेन्द्र प्रसाद रवि’