हे आचार्य तुम ही पार्थ हो”
हे पार्थ!तेरा कर्मभूमि विद्यालय है,
हे आचार्य!रणभूमि भी शिक्षालय है,
लेखनी और किताबें तेरा अस्त्रशस्त्र है,
तो फिर तुम्हें किस बात का भय है।
तेरी लेखनी के प्रवाह में है समरसता,
राष्ट्र निर्माण में रहता है अग्रणी भूमिका,
यूं ही नहीं भरती ये धरा तुम्हें अंक सदा,
हे पार्थ!तुम्हीं हो इस जहाँ के जननायक।
निराशाओं के बादलों से कभी घिरते नहीं,
राष्ट्र के नव-निर्माण में कभी पीछे रहते नहीं,
तेरे जैसा यहाँ कोई सामर्थ्यवान है भी नहीं,
हे पार्थ!तेरे जैसा कोई अद्भुत प्राणी भी नहीं।
हर राजकीय कार्यों के निर्वहन में हो सक्षम,
चुनाव हो या जनगणना कार्यों की तैयारियांँ,
स्वच्छता की पहरेदारी या रसोई का निर्माण,
हे पार्थ!निराला हो क्योंकि आचार्य हो तुम ।
शुष्कता भरा दिन हो या शीतल संध्या,
तपती रेत से गुजरते पल या तरु का छाँह,
मस्त हो चलते रहते हो सदैव अपनी राह,
सत्य है अनुसुलझे पहेली हो यहां का पार्थ।
एस.के.पूनम(स.शि.)
फुलवारी शरीफ, पटना।