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चिड़िया की आंख-सुधीर कुमार

Sudhir

सुधीर कुमार

चिड़िया की आंख

कौरव और पांडव थे,
चचेरे भाई जाने जाते।
द्रोणाचार्य थे गुरु सबके,
जो राज गुरु कहलाते।
कौरव और पांडव को वे,
सिखलाते धनुष चलाना।
उनका था उद्देश्य सभी को,
युद्ध में निपुण बनाना।
शिक्षा जब सबकी पूरी हुई,
तो सोंचे श्रेष्ठ का करें चयन।
कौन है कितना योग्य तथा,
लक्ष्य पर हैं किसके नयन।
यही सोचकर एक वृक्ष पर,
लकड़ी की चिड़िया लटकाई।
दूर से जिसकी एक आंख,
पड़ती थी सबको दिखाई।
शर्त रखे जो तीर चलाकर,
भेदेगा नेत्र उस खग का।
जीतेगा यह बाजी वही जो,
परिचय देगा सजग का।
भीम, दुर्योधन, नकुल, युधिष्ठिर,
सबको बुला बारी बारी ।
पूछा क्या दिखलाई पड़ता,
जो है उस वृक्ष पर सारी।
किसी ने कहा वृक्ष है दिखता,
किसी ने कहा केवल पत्र।
किसी ने कहा चिड़िया दिखती,
और किसी ने तो सर्वत्र।
तब अर्जुन को वहां बुलाकर,
पूछा उससे भी वही प्रश्न।
उसने कहा मुझे है दिखता,
बस पक्षी का मात्र नयन।
खुश होकर तब बोले गुरुवर,
करो लक्ष्य का अब संधान।
भेदो अपने लक्ष्य को प्यारे,
दिखला दो तुम अपना ज्ञान।
अर्जुन ने तब तीर चलाया,
लगा नेत्र में जाकर के।
गले लगाकर बोले गुरुजी,
धन्य हूं शिष्य तुझे पाकर के।

सुधीर कुमार

किशनगंज बिहार

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