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पानी की कहानी-जैनेन्द्र प्रसाद रवि

Jainendra

पानी की कहानी

आओ बच्चों तुम्हें सुनाएं आज एक नई कहानी।
कहां से आता, कहां को जाता है वर्षा का पानी।।
सूरज से गर्मी को पाकर जल वाष्प बन जाता है,
वाष्प बन हल्का होने से यह ऊपर को जाता है।
दूर क्षितिज में हवा सहारे करता है दरबानी।
कहां से आता, कहां को जाता है वर्षा का पानी।।
नमी युक्त होने पर हवा उसका भार नहीं सह पाता है,
घनीभूत होकर नमी तब फिर बादल बन जाता है।
वापस पृथ्वी पर आ जाती बुंदे बनकर आसमानी।।
पानी इसका द्रव्य रूप है, बर्फ रूप में ठोस है,
वाष्प रूप में यह उड़ जाता गिरता बनकर ओस है।
जल संरक्षण के बदले हम करते इससे मनमानी।।
जल है तो कल है, है इस धरती की हरियाली,
पानी है अमृत से बढ़कर, सबकी होठों पर लाली।
पानी पर ही टिकी हुई है हमसब की जिंदगानी।।
प्रकृति का है नियम अनोखा दिन के बाद आती है रात,
समय-समय से ऋतु बदलते जाड़ा गर्मी और बरसात।
समय से ऋतुओं का आना अब हो गई बात पुरानी।
कहां से आता, कहां को जाता है वर्षा का पानी।।

जैनेन्द्र प्रसाद रवि
म. वि. बख्तियारपुर
पटना (बिहार)

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