विजय सर, आपका जाना मानो,
हम सब को व्यथित कर जाना।
कर्म से ही पहचान बनती है,
कर्म से ही आपको हमने जाना।
एक दिव्य पुरुष की आत्मा,
एक स्नेहिल अभिभावक थे आप।
हम समझ नहीं सके अबतक,
यूं दूर चले जाना चुपचाप।
स्तब्ध हूं, मर्माहत हूं मैं,
खुद को कैसे समझाऊं।
क्या खोया हमने आपके रूप में,
एक नायाब हीरा थे आप।
करबद्ध विनती है उस ईश्वर से,
फिर एक बार आपका सानिध्य मिले।
विजय सर, आपका जाना मानो,
हम सब को व्यथित कर जाना।
मध्य विद्यालय रामपुर बी एम सी सह उच्च माध्यमिक विद्यालय रामपुर दक्षिण,
फारबिसगंज अररिया
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