एक कविता, बच्चों के लिए
मेरे बच्चों!
आज जरूरी नहीं है बहुत
की मैं तुम्हारे प्रति नई शपथ लूँ
इस मंच से
लेकिन यह जरूरी है
की इस बहाने मैं दुहरा सकूँ
वह तमाम कही अनकही भावनायें
जहाँ तुम होते हो
जहाँ तुम कहते हो मुझसे
की मेरी पूर्णता तुमसे ही है
यह कविता तुमसे ही पूरी होती है।
मैं अनुभव कर पाता हूँ जब
तुम्हारे अस्फुट शब्दों के अर्थ
तुम्हारी मुस्कुराहटों के मायने
मैं अनुभव कर पाता हूँ जब
की तुझमें मैं मचलता हूँ,
तुम साक्ष्य हो
मेरी प्रतिबद्धताओं का,
उन अनन्त राह की असीमताओं का
जहाँ चलना शेष है अभी
बहुत कुछ करना शेष है अभी।
मेरे बच्चों!
मैं यह नहीं कहता
मैं यह नहीं कह सकता,
मैं सबकुछ हूँ तुम्हारे लिए
लेकिन यह कहना चाहूँगा
और कितनी ही बार कहना चाहूँगा
की तुमसे ही पूरी होती है यह यात्रा
तुमसे ही मिलता है नाम मुझे…
इसे कुछ भी कहकर पुकार सकते हो,
दिव्य,अदिव्य,विशेष, सामान्य,कुछ भी कहो,
मेरी पूर्णता हो तुम।
मेरी सार्थकता हो तुम।
-गिरिधर कुमार,शिक्षक,
उत्क्रमित मध्य विद्यालय जियामारी,
अमदाबाद, कटिहार