कन्हैया की बाँसुरी
मनहरण घनाक्षरी छंद
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नैन कजरारे काले
सिर लट घुंघराले,
सबकी लुभाता मन, सूरत ये सांवरी।
मोहक छवि के आगे
फीके पड़े कामदेव,
मोहन का रूप देख, राधा होती बाबरी।
मुरली की धुन पर
मोहित जहान सारा,
सुनकर सुध-बुध खोती सखी नागरी।
होठों पर इठलाती
स्वर संग बलखाती,
सबकी चुराती चैन, कन्हैया की बांसुरी।
जैनेन्द्र प्रसाद रवि’
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