सच में इस दुनिया में जिया वही ,
जिसे जाने के बाद भी लोग याद करते हैं।
वरना जीते जी लोग याद नहीं करते,
मरने के बाद तो केवल फरियाद ही करते हैं।।
सन अठारह सौ चौरासी के तीन दिसंबर को,
महादेव सहाय के घर एक बालक का जन्म हुआ।
होनहार बालक जीरादेई के लाल से,
आजन्म अद्वितीय कर्म हुआ।।
परीक्षार्थी, परीक्षक से तेज है,
है लिखी हुई केवल उनकी ही कॉपी में।
क्या यह कम है उनकी योग्यता जानने को,
जो रखी हुई है धरोहर झाँकी में।
यह पहली बार सामने आया,
जब जाँची पुस्तिका, परखी गई कई बार।
हर बार वह उचित ही ठहरा,
जो पहले परीक्षक ने लिखा पहली बार।
सभी परीक्षाओं में राजेंद्र बाबू ने
प्रथम स्थान ही प्राप्त किया।
उनकी मेधा को सभी ने लोहा माना,
जब ऐसी कीर्ति प्रशस्त किया।
कीर्ति के धनी राजेंद्र बाबू ,
विनयशीलता के खम्भ थे।
विद्वता में किसी से कम नहीं,
शालीनता में देश के स्तंभ थे।
किसी को गरिमा मिलती है,
किसी बड़े पद पर जाने पर।
पद की ही गरिमा बढ़ जाती थी,
राजेंद्र बाबू के उस पद पर आने पर।
ऐसे थे भारत के प्रथम राष्ट्रपति,
जिन्होंने देश का मान बढ़ाया।
केवल एक बार नहीं दुबारा भी,
स्वतंत्र भारत का स्वाभिमान जगाया।
सादगी इनके रग- रग में थी,
वाणी इनका अमोघ अस्त्र था।
थे बड़े ही प्रत्युत्पन्नमति,
शालीनता इनका शस्त्र था।
इस देश में सपूतों की कमी नहीं,
पर राजेंद्र बाबू जैसे विरले ही मिलते हैं।
जिन्हें अपनी सभ्यता, संस्कृति है प्यारी,
वे आजन्म कमल की भाँति खिलते हैं।
अमरनाथ त्रिवेदी
पूर्व प्रधानाध्यापक
उत्क्रमित उच्चतर माध्यमिक विद्यालय बैंगरा
प्रखंड- बंदरा, जिला- मुजफ्फरपुर