कुण्डलिया
अनुकंपा के नाम पर, अब मिलता है काम
वरना जेबें ढीली कर,सहज निकालो दाम।
सहज निकालो दाम,न रखो किसी में आस्था
मेधा कुछ नहीं करे,बनी है यही व्यवस्था।
कह’ विनोद’कविराय,नौकरी मिले करम पा
सिद्ध होती वरदान यही अब तो अनुकंपा।
छोटी-छोटी बात पर,क्यों निकलती रैली
आज यहाँ तो वहाँ कल, रीति कैसी फैली।
रीति कैसी फैली,नहीं है किसीको चिन्ता
करते जनता को त्रस्त, कि जिससे जैसे बनता।
कह “विनोद”घबराय,कि मन में बातें खोटी
समस्या है गम्भीर, नहीं ये बातें छोटी।
राजनीति में नीति कहाँ,सिर्फ बचा है राज
लगता यह चीलझपट्टा,छीना झपटी आज।
छीनाझपटी आज,नहीं अब नेता रहता
होता है बस वही कि जैसा गुंडा(धंधा) कहता।
कह “विनोद”घबराय,नहीं बचती कहीं प्रीति
इन्सानियत को लील चुकी है यह राजनीति।
डॉ. विनोद कुमार उपाध्याय
राजकीय आदर्श मध्य विद्यालय,
अहियापुर, अरवल
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