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चिराग बन चलता चल

चिराग बन चलता चल

जिंदगी की राह में,
कदम मिला के चलता चल।
गम मिले कि मिले खुशी,
तू मुस्कुरा के बढ़ता चल।
यह न सोच कि क्या मिला,
जो मिला बहुत मिला।
अंधेरे को न कोसना,
तू बन चिराग जलता चल।।

जीवन आनी जानी है,
पल-दो-पल की कहानी है।
ध्यान लगा के सुन जरा,
ये गीता की जुबानी है।
कर्म सदा तू करता चल,
फल की इच्छा मत कर।
फिर देख कैसे दुनिया ये,
बनती तेरी दीवानी है।।

हौसलें को रख बुलंद,
बढ़ने का संकल्प कर।
औरों की न आस रख,
खुद पे तू विश्वास कर।
होगा नया सवेरा,
मिटेगा घोर अंधेरा।
पिघलेगा ये पीर पहाड़,
कदम तो रख तू जमकर।।

अवनि से अम्बर तक,
फैल रहा प्रकाश है।
जो कभी झुकता नहीं,
उम्मीदों का आकाश है।
चल सदा तू चलता चल,
आगे – आगे बढ़ता चल।
होगा तेरा जय- जयकार,
हमको तो विश्वास है।।

कुमकुम कुमारी “काव्याकृति”
शिक्षिका
मध्य विद्यालय बाँक, जमालपुर

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