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चिर निद्रा – विजय शंकर ठाकुर

-: चिर निद्रा :-

चिड़िया
फुदक रही थी,

डाली पर,
सुना रही थी,
मीठे गीत,
अचानक !
आई नीचे,
धम, आह !
कितनी निर्दयता,
शायद !
अब कभी नहीं गायेगी,
कभी नहीं,
फुदकेगी,
चिर निद्रा !

विजय शंकर ठाकुर
विशिष्ट शिक्षक
म वि गोगलकटोल
प्रखंड बोखड़ा
सीतामढ़ी

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