छंद – दोहा
जीने का अधिकार है, सबको एक समान।
जीव-जंतु सबका करें, रक्षा बन बलवान।।१।।
रखिए हरपल हीं यहॉं, दीन-हीन का ध्यान।
जीने का अधिकार दे, और उन्हें सम्मान।।२।।
जीने का अधिकार तो, सबको है दिन रैन।
मूरख क्योंकर छीनता, स्वार्थ भाव बेचैन।।३।।
करता विचार है नहीं, बनता है नादान।
जीने का अधिकार है, ईश्वर का वरदान।।४।।
जीव-जंतु सब एक- सा, समता सबकी जान।
अहं भाव मत पालिए, करिए न परेशान।।५।।
कण-कण में भगवान है, समझे जो इंसान।
जीने के अधिकार को, लेता उर से मान।।६।।
पूरी करते चाह को, भूल रहा इंसान।
सबका है अधिकार यह, बनिए जरा सुजान।।७।।
मूरख मद में जो रहे, रखें दुष्ट का ज्ञान।
करता जीवन है हनन, समझे खुद की शान।।८।।
कौन यहॉं है मानता, सबको एक समान।
जीने के अधिकार से, जीवन हो आसान।।९।।
पाठक वंदन कर कहे, कहना मेरा मान।
जीने का अधिकार दे, बनिए कृपा निधान।।१०।।
रचयिता:- राम किशोर पाठक
प्राथमिक विद्यालय भेड़हरिया इंगलिश पालीगंज पटना।
संपर्क – 9835232978

