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डॉ. राजेन्द्र प्रसाद: युगपुरुष की गाथा- सुरेश कुमार गौरव

३ दिसंबर १८८४,
बिहार की माटी में जन्म हुआ।
ज्ञान, सत्य, सेवा का दीप,
नवयुग का प्रकाश दीप्त हुआ।

बाल्यकाल से बुद्धिमान थे,
विद्या के अनुपम भंडार थे।
हर परीक्षा में प्रथम रहे,
कर्तव्य-पथ के सटीक रडार थे।

न्याय सीखा, ज्ञान बढ़ाया,
बने अधिवक्ता देश महान।
गाँधी जी से प्रेरित होकर,
छोड़ दिया वह धन-सम्मान।

आजादी की अलख जगाई,
अंग्रेजी सत्ता अस्वीकार किया।
भारत माँ की सेवा खातिर,
मातृ देश धर्म स्वीकार लिया।

संविधान जब बन रहा था,
नेतृत्व आपका प्रखर था।
राष्ट्रपति बनकर भी आपका,
सादगी जीवन अति शिखर था।

किसानों के थे आप रखवाले,
जनता के थे जनसेवक महान।
हर हृदय में वास आपका,
भारत के थे मान-अभिमान।

२८ फरवरी १९६३,
सेवा का दीपक बुझ गया।
किन्तु कर्म और आदर्श आपका,
भारत के दिलों में बस गया।

आपसे हमने सीखा सब कुछ,
कर्तव्य पथ न छोड़ेंगे।
राष्ट्रभक्ति और सत्यनिष्ठा,
सदैव हृदय में बोएँगे।

सुरेश कुमार गौरव,
‘प्रधानाध्यापक’
उ. म. वि. रसलपुर, फतुहा, पटना (बिहार)

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