रिश्ते डोरी प्रेम की, आए मन को रास।
नेह सत्य सद्भावना, लाती नवल उजास।।
रिश्तों को शुचिमय सघन, रखें बनाए आप।
अपने निश्छल नेह की, छोड़ें गहरी छाप।।
अपनेपन के भाव की, रिश्ते में हो गंध।
जीवन सुरभित हो सदा, ऐसे हों संबंध।
अंतर्मन की चाह में, नए डालिए रंग।
रिश्तों की पर हो नहीं, मर्यादाएँ भंग।।
रिश्ते हैं वटवृक्ष सम, रखें सुरक्षित आप।
ज्यों-ज्यों ये आगे बढ़े, पुलक उठे मन बाग।।
रिश्ते की जो डोर को, रखते हैं मजबूत।
राग-द्वेष कटुता घृणा, होते नहीं प्रभूत।।
निर्मल मन के भाव से, रिश्ते आते पास।
सबको रहती नेह की, सघन डोर की आस।।
रिश्ते होते तब सघन, जब हो मन-विश्वास।
स्नेहिल शुभ्र विचार में, रहती अंतस पास।।
रिश्ते की मधु गंध से, आई स्वच्छ बहार।
मन की कंचन भावना, देती मधुरिम प्यार।।
देव कांत मिश्र ‘दिव्य’
मध्य विद्यालय धवलपुरा, सुलतानगंज, भागलपुर, बिहार
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