भूप जनक के बाग में, आए राजकुमार।
दिव्य मनोहर वृक्ष से, मुग्ध नयन अभिसार।।
नव किसलय नव पुष्प से, हर्षित पुष्पित बाग।
कीर मोर के मध्य में,कोयल छेड़े राग।।
ताल सुशोभित बाग में, मणि सज्जित सोपान।
निर्मल शीतल नीर में, बहुविध पद्म-वितान।।
बाग सरोवर देखकर, हर्षित प्रभु श्रीराम।
परम मनोहर दृश्य है, सुखमय नयन ललाम।।
पत्र पुष्प लेने लगे, रघुवर करुणा-केतु।
उसी समय माँ जानकी, आईं पूजन हेतु।।
संग जानकी की सखी, गाती मधुरिम गीत।
निकट शैलजा गेह की, शोभा अनुपम मीत।।
संग सखी माँ स्नान कर, आई गिरिजा धाम।
पूजन कर वर माँगती, पूरण हो मम काम।।
संग जानकी छोड़कर, सखियाँ आईं बाग।
राम- लखन की देख छवि, उठीं उमेंगें जाग।।
प्रेम मग्न विह्वल सखी, आई सीता पास।
सुंदर पुलकित गात में, है प्रसन्नता वास।।
सखी कहे माँ जानकी, आए राजकुमार।
साँवल दूजा गौर हैं, रूप-मोहिनी सार।।
देव कांत मिश्र ‘दिव्य’ मध्य विद्यालय धवलपुरा, सुलतानगंज, भागलपुर, बिहार