🙏ऊँ कृष्णाय नमः🙏
हास्यरस(मनहरण घनाक्षरी)
कह रही धर्मपत्नी,
रहने को मौन ठानी,
ऐसी मिथ्या धरा पर,पात्र परिहास है।
संगिनी बेलन संग,
रक्षित उसका अंग,
कोई नहीं करे तंग,अस्त्र-शस्त्र खास है।
झाडू पोंछा नित्य दिन,
मक्खी करे भिन-भिन,
सफाई है छिन्न-भिन्न,उसे एहसास है।
सब्जी में तीखापन,
स्वाद में अपनापन,
बोली वाणी सुमधुर,पति को विश्वास है।
एस.के.पूनम
0 Likes