जीवन का वह स्वर्णिम क्षण,
जो था नन्हा- मुन्ना बचपन ।
उस बचपन की कुछ यादें हैं,
कुछ प्यारे-प्यारे वादे हैं ।
जो की थीं हमनें पेड़ों संग,
गौरैयों संग,गुब्बारों संग ।
मित्रों की ऐसी टोली थी,
खेलों में आँख- मिचौली थी ।
तरुवर की डाली जब झुककर
करता हम सबका आलिंगन ।
झूले लगते जब पेड़ों पर
खिल उठता हम सबका मन ।
बागों में जब फूलों पर ,
भँवरे करते रहते गुंजन ।
मन भाव विभोर हो जाता था,
खिल उठता था फिर से बचपन ।
जब नदियाँ कल- कल करती थी
बज उठता था जब जल -तरंग ।
जब ठंडी-ठंडी हवा सुहानी,
भर देती मन में नये उमंग।
जब ताल तिलैयों में दिनभर
केले के बेड़े सजते थे,
और सन्ध्या होते ही फिर से,
सूरज चल देता अस्ताचल ।
जब झूम झूम कर अमराई,
खुशियों के संदेशे देते थे,
तब हँसता मुस्काता बचपन,
उन्मुक्त छलांगे भरता था ।
जब बागों में कलियाँ खिलकर
इठलाती थी इतराती थीं,
जब फूलों पर तितलियों के झुण्ड
दिनभर मंडराया करती थीं ।
तब हम बच्चे आँखे मीचे,
भागा करते तितलियों के संग,
इस तरह से भागा- भागी में
बचपन के उस नादानी में,
हम करते रहते
सुबह से शाम ।
जब घूम घूम कर दिनकर भी,
थककर के सो जाता था
तब मस्त मगन हो कर हम भी,
अपने घरोंको लौटा करते थे ।
फिर नया सवेरा होता था ,
दिन यूँ ही चलता रहता था ।
जीवन के भागा भागी में,
खो गया हमारा वो बचपन
जब मिलता है फुरसत का क्षण,
याद आता है फिर से बचपन ।
प्रीति कुमारी
कन्या मध्य विद्यालय मऊ विद्यापति नगर समस्तीपुर