बहुत गरम हुए सूरज दादा
बहुत गरम हुए सूरज दादा,
कोई उन्हें समझाए न।
कैसे हमारे दिन कटेंगे,
कोई उन्हें बतलाए न।
सूरज दादा बड़े सवेरे,
अपना रंग दिखाते हैं।
उसी अंदाज में सुबहोशाम,
वे अपनी धाक जमाते हैं।
आसमान से आग बरसता,
हवा भी आग सी लगती है ।
खेलें कूदें हम इसमें कैसे,
तवा सी धरती दिखती है।
कहीं आने जाने पर भी,
मम्मी का पहरा रहता है।
उनसे पकड़े जाने के भय से,
दिल भी सहमा रहता है।
खेलकूद में विघ्न पड़ने से,
गुस्सा भी हमें आता है।
खेल ही हमारे जीवन को,
सुबह शाम बहलाता है।
इतनी गर्मी रहने से,
मन अशांत हो आता है।
तन पर पसीना होने से,
दिल और कहीं खो जाता है।
सूरज से नित प्रार्थना करते,
कुछ तो ताप घटायें न।
हम बच्चों के लिए हमेशा,
राहत हमें दिलायें न।
अमरनाथ त्रिवेदी
पूर्व प्रधानाध्यापक
उत्क्रमित उच्चतर माध्यमिक विद्यालय बैंगरा
प्रखंड बंदरा , जिला मुजफ्फरपुर

