Site icon पद्यपंकज

बिन शिक्षक वैभव अधूरा- सुरेश कुमार गौरव

Suresh-kumar-gaurav

शिक्षक की गोद में पलता,उत्थानों का भाव।
जिसकी पीठ पकड़ कर चलता,पड़ता देश प्रभाव॥
बोए बीज वही बन जाता,वटवृक्षों का नाम।
उसकी छाया में संवरता,जन-जन का अभिराम॥

काल की गति मोड़ सके जो,ऐसा ज्ञानी वीर।
धरती-अम्बर जोड़ सके जो,शिक्षक ही अधीर॥
बिन शिक्षक वैभव अधूरा,सूनी सी धरती।
उसके बिना न खिलती कोई,ज्ञान-पुष्प की क्यारी॥

चाणक्य ने रचा इतिहास,मगध माटी में मिलाया।
बालक चंद्रगुप्त को,चक्रवर्ती सम्राट बनाया॥
सदियों से बनते गुरु,संदीपन से लेकर कृष्ण।
शिक्षक बीज बुनें जो,जग पाए सत्व, तेज, तीक्ष्ण॥

शिक्षक से ही अर्जुन पाता,धनुर्विद्या में मान।
गुरु द्रोण के नयनों ने ही,रचा एक महायान॥
राम बने थे बालक,शिव-शक्ति से जो शोभे।
शिक्षक की उपेक्षा कर जो,वो रावण भी कहलावे॥

हम सबको यह भाग्य मिला है,शिक्षक का सम्मान।
गुरु बनकर जिम्मेदारी, थामी कर्म रुपी अधिमान ॥
संकल्प करें आज यही,अपना फर्ज निभाएँ हम।
भारत को फिर गुरु बनाएँ,ज्ञान दीप सजाएं श्रेष्ठ तम॥

गर्व करेंगे हर पल अपने,शिक्षक-पद के नाते।
सच्चे कर्मों से जग में,दीप शिक्षा के जलाते॥
भारत माँ के लाल सभी,ज्ञान-वृक्ष बन जाएँ।
सच्चा शिक्षक बन समाज को,पथ पर अग्रसर लाएँ॥

@सुरेश कुमार गौरव,प्रधानाध्यापक, उ.म.वि.रसलपुर, फतुहा, पटना (बिहार)

0 Likes
Spread the love
Exit mobile version