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बेटियां- नवाब मंजूर

Nawab

बेटियां
होतीं हैं किताब
पन्ने दर पन्ने पढ़ने पड़ते हैं
समझने के लिए उन्हें!

पढ़ेंगे जितना
उतना ही समझेंगे
समझ कर ही तो कहेंगे
वाह वाह…
न पढ़ता तो कैसे समझ पाता?
कितना करतीं हैं हमसे प्यार?
बेटियां!

नित्य नए खुलेंगे
ममता की पोटली से उनके
बलिदानों की दास्तान!
कभी भाई के लिए
कभी माई के लिए
पिता तो कभी परिवार की खातिर
सदा खुशियां अपनी लुटाती आयीं हैं
बेटियां!

ख्वाहिशें कभी पूछ लो
तो बतातीं नहीं हैं
“कुछ नहीं चाहिए सब कुछ तो है”
बस इतना सुनाती हैं
बेटियां!

कभी स्वेच्छा से लाओ तो कहेंगी
पापा ! इसकी क्या जरूरत थी?
मेरे पास तो है पहले से ही
बेवजह परेशान हुए
पैसे नुकसान हुए..
इतना बचातीं हैं
बेटियां!

इसलिए कभी दुर्गा
कभी लक्ष्मी सरस्वती कहलाती हैं
बेटियां!

बिना पढ़ें उन्हें
कोई कैसे समझ पाएगा?
कूपमंडूक बन रह जाएगा।

एक अनपढ़
उन्हें बोझ ही बतलाएगा
कम उम्र में शादी ब्याह कर
समाज में इतराएगा!
जो किसी भी दृष्टिकोण से
सही नहीं कहलाएगा!!

© नवाब मंजूर
प्रधानाध्यापक
उमवि भलुआशंकरडीह, तरैया , सारण।

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