कभी अभिमान तो कभी स्वाभिमान है पिता …….
कभी धरती तो कभी आसमान है पिता ….
जन्म दिया है अगर मां ने
जानेगा जिससे जग वो पहचान है पिता …..
कभी कंधे पे बिठाकर मेला दिखाता है पिता ….
कभी बनके घोड़ा घुमाता है पिता …..
मां अगर धरा पे चलना सिखाती है
तो अपने पैरों पे खड़ा होना सिखाता है पिता ….
कभी रोटी तो कभी पानी है पिता ….
कभी बुढ़ापा तो कभी जवानी है पिता …
मां अगर है मासूम सी लोरी
तो कभी ना भूल पाऊंगा वो कहानी है पिता ….
कभी हंसी तो कभी अनुशासन है पिता …
कभी मौन तो कभी भाषण हैं पिता ….
मां अगर घर में रसोई है
तो चलता है जिससे घर वो राशन है पिता ….
सभी ख्वाब को पूरी करने की जिम्मेदारी है पिता ….
कभी आंसुओं में छिपी लाचारी है पिता …
मां अगर बेच सकती है जरूरत पे गहने
तो अपने को जो बेच दे वो व्यापारी हैं पिता …..
कभी हंसी और खुशी का मेला हैं पिता …
कभी कितना तन्हा और अकेला हैं पिता …
मां तो कह देती है अपने दिल की बात
सब कुछ समेट के आसमान सा फैला है पिता …
सौजन्य से
जनेश्वर चौरसिया
शिक्षक -उत्क्र.उच्च माध्यमिक विद्यालय सलथुआ, प्रखंड -कुदरा, कैमूर