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मैं नारी हूॅं – स्नेहलता द्विवेदी ‘आर्या’

Snehlata

मैं नारी हूँ।
(सृजन की क्रांति)

मैं कल-कल बहती गंगा हूँ।
मैं यमुना सहित तिरंगा हूँ,
धरती की प्यास बुझाकर मैं।
हरियाली अवनि बहुरंगी हूँ,
मैं नारी हूँ, मैं नारी हूँ।

मैं जननी, जीवन की सृजनहार।
मैं ममता, मैं ही हूँ दुलार,
शैशव बचपन का मैं आधार,
मुझमें सृजन की सहस्त्रधार।
मैं स्वयं के खंडों को गढ़कर,
इस धरा सृष्टि की गंगा हूँ।
मैं नारी हूँ,मैं नारी हूँ ,

मैं बेटी, बहन, सखी, प्रियसी।
मैं माँ, ममता, तीरथ व्रत – सी,
सहस्त्र रूपों मे रचती -बसती।
नव जीवन को गढ़ती-बढ़ती,
मैं नारी रूप सहजतम हूँ।
इस सृजन का मैं अंतर्मन हूँ,
मैं नारी हूँ, मैं नारी हूँ।

मेरा तम – यम है यूँ विशाल।
अवनि – अम्बर त्रैलोक्य सार,
सुर -नर -मुनि और गन्धर्व ब्याल।
सबके नव-सृजन का मूलाधार,
फिर भी कल-कल निर्मल गंगा।
मैं सृजन -सहज रस हाला हूँ,
मैं नारी हूँ ,मैं नारी हूँ।

यह सौम्य मेरा, यह धार मेरा।
यह मृदु सुलभ व्यवहार मेरा,
मेरे आँचल के दूध-सिक्त।
जीवन – प्रणय आबन्ध – युक्त,
मैं सानिया, अवनि, मेरीकॉम।
मैं इंदु ,लता, कल्पना हूँ,
इस तरह असंख्य हैं रूप मेरे।
फिर भी धरनी पर भारी हूँ?
मैं नारी हूँ , मैं नारी हूँ।

अब सोच जरा तू मूढ़मते,
शक्ति, युक्ति मैं मुक्ति सखे।
अवनि,अम्बर, सागर,विहँसे

घर-आँगन में भी स्वर्ग बसे।
फिर मैं धरती पर भारी क्यों?
मैं नारी हूँ, मैं नारी हूँ।

डॉ स्नेहलता द्विवेदी
उत्क्रमित कन्या मध्य विद्यालय शरीफगंज कटिहार

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