(रूप घनाक्षरी छंद)
ठंडी-ठंडी हवा चली,
सूखी मिट्टी हुई गीली,
धूल भरी आंधी लाया, बादल ने बूंदों संग।
हाँफ रहे पेड़ पौधे,
सभी खड़े दम साधे,
तन में पसीना आया, मौसम के देख रंग।
धरती उबल रही,
भट्ठी बन जल रही,
जीव जंतु लड़ रहे, जिंदगी के साथ जंग।
कभी नहीं मिले चैन,
दिवस हो याकि रैन,
शाम ढलने को आई, जल रहा अंग अंग।
जैनेन्द्र प्रसाद रवि’
म.वि. बख्तियारपुर, पटना
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