Site icon पद्यपंकज

वसुधा पुकारती – एस. के. पूनम

विधा – मनहरण छंद

तड़ाग में भरा पंक,
अब खिलेगा सारंग,
पुष्प पर बैठे अलि, बना है शरारती।

लुभावने लग रहे,
ऊँचे-ऊँचे तरुवर,
छोटे-मोटे वृक्षों पर, फैल रही मालती।

प्रकाश की तलाश में,
जला रहे वनचर,
मानवों ने भूल किया, प्रकृति कराहती।

बरसते अंबर से,
जल की शीतल बूंदें,
होकर करूणामय, वसुधा पुकारती।


रचयिता – एस. के. पूनम

0 Likes
Spread the love
Exit mobile version