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विनाश की आंधी- जैनेन्द्र प्रसाद रवि

Jainendra

विनाश की आंधी

दूसरा हिटलर के सामने दुनिया नतमस्तक है,
आज तीसरा विश्व युद्ध दे रहा दस्तक है।
कलम मौन है केवल आज तोप गुर्राता है,
रह रह कर एक कायर रोज आंख दिखाता है।

एक सनकी के चलते आज दुनिया बिरान होगी,
सबके आंखों के सामने दुनिया श्मशान होगी।

रह-रह कर कोई तानाशाह सनक दिखाएगा,
बेगुनाह जनता पर सत्ता की हनक दिखाएगा।

आकाश में गर्जना सुनाई देती है मोर्टारों की,
मानवता मार झेल रही है मिसाइल प्रहारों की।

भोजन-पानी के लिए वहां जनता तरस रही है,
मानवीय सहायता के बदले गोली बरस रही है।

यूं मासूमों को ले गोद कब तक अबलाएं रोएंगी,
हाथों की चूड़ियां तोड़ सुहागिनें मांग धोएंगी।

भूखे बच्चे रोएंगे शहीद पिता की याद में,
आंखों में आंसू सूख जाएंगे मां की गोद में।

जनता कब तक मदांधो को सिंहासन बैठाएगी,
अच्छे दिनों की उम्मीद की कीमत चुकाएगी।

क्या फिर से कोयल बसंत में बागों में बोलेगी?
या पतझड़ के डर से कभी मुंह नहीं खोलेगी।

बागों में फूलों पर फिर से तितली मंडरायेगी,
या बमों की झांसों से कलियां एकदम मुर्झायेगी?
ठूंठ पेड़ों पर पंछियों का फिर से बसेरा होगा,
या उजड़े आशियानों में मरघट का डेरा होगा?

बैठकर घोसले में फिर से पक्षियां चहचहागें?
या बारूद की गंध में वे सांस नहीं ले पाएंगे?
क्या समस्या का समाधान एकमात्र युद्ध है?
क्या समझौते के सभी रास्ते हो गए अबरुद्ध हैं?
साथ बैठकर क्या शांति का मार्ग खोज नहीं सकते?
सब मिलकर क्या एक सनकी को रोक नहीं सकते?
दुनिया एकजुट हो जाए शांति का लेकर संकल्प है,
सदियों से शांति का कोई दूसरा नहीं विकल्प है।

अब रोकना होगा इस विनाश की आंधी को,
फिर से आना होगा ज़मीं पर बुद्ध और गांधी को।

जैनेन्द्र प्रसाद रवि

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