🙏कृष्णाय नमः🙏
विधा:-मनहरण
(विशुद्ध हो सटता)
घर-बार छोड़ कर,
करते हैं योग ध्यान,
बिछा हुआ भ्रम जाल,काटे नहीं कटता।
आदान-प्रदान कर,
कुँज मुंज सजाकर,
चमत्कार देख कर,गुप्त नाम रटता।
लघु पंथ अपनाया,
मन भर नहीं पाया,
उभरी चिंता की रेखा,क्षुब्ध मन हटता।
चहूंओर झाँक कर,
झूठ-सच देख कर,
चला कर्म पथ पर,विशुद्ध हो सटता।
एस.के.पूनम(पटना)
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