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वे हँसते- हँसते झूल गये- रामकिशोर पाठक

वें हॅंसते-हॅंसते झूल गये, फाँसी को थें चूम गये।

उम्र जवानी वाला लेकर, जोश तुफानी भर लाया।
धूल चटाने अंग्रेजों को, वीर बाँकुरा चल आया।
भारत की बेड़ी को जिसने, कसम तोड़ने की खाया।
अपनी इच्छाओं को जिसने, हॅंस-हॅंस कर हवन कराया।
सुखदेव, भगत, राजगुरु यही, देते सबको सीख गये।
वें हॅंसते-हॅंसते झूल गये, फाँसी को थें चूम गये।

बारह वर्ष की आयु लिए, घूम रहा गलियारों में।
जालियाँवाला कांड देखकर, कूद पड़ा अंगारों में।
जज्बा उसका फौलादी था, नन्हा अपने यारों में।
गेह परिवार छोड़ा जिसने, सभी पर्व त्यौहारों में।
किया नौजवान भारत सभा, मिल-जुल कर थें गठन नये।
वें हॅंसते-हॅंसते झूल गये, फाँसी को थें चूम गये।

निकल पुणे से वीर साहसी, देखा कुछ ऐसा सपना।
फहरा रहें तिरंगा अब तो, लेकर आजादी अपना।
आकर मिले आजाद से वो, क्रांति हेतु सीखा तपना।
लगा राष्ट्र सेवा में वह तो, लुटा दिया सब-कुछ अपना।
मारी गोली सांडर्स मरा, बदला लाला हनन लिये।
वें हॅंसते- हॅंसते झूल गये, फाँसी को थें चूम गये।

शहीद-ए-आजम का साथी, सुखदेव सदा कहलाए।
राजगुरु संग मिलकर वे भी, सांडर्स को थें उड़ाए।
केंद्रीय संसद में भगत थें, अंग्रेजों को थर्राए।
लाहौर-षड्यंत्र में तीनों, जैसे मुजरिम कहलाए।
बोल जय-हिंद की जयकारा, चढ़ फाँसी पर सभी गये।
वें हॅंसते-हॅंसते झूल गये, फाँसी को थें चूम गये।

राम किशोर पाठक
प्राथमिक विद्यालय भेड़हरिया इंगलिश पालीगंज, पटना

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