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शब्द भेद की व्यापकता – अमरनाथ त्रिवेदी

Amarnath Trivedi

शब्द भेद की व्यापकता

अक्षर- अक्षर  से  बनते शब्द ,
मैं उस शब्द के भेद बताने आया हूँ ।
उस भेद में रहते  कैसे शब्द ,
जरा मै उसे    सिखाने आया हूँ ।

उत्पत्ति के आधार पर प्रथमतः ,
शब्दों के भेद बताता हूँ ।
तत्सम , तद्भव , देशज , विदेशी ,
उनके  सौरभ सकल  लखाता हूँ ।

आए जो संस्कृत  से  सीधे शब्द ,
वे तत्सम रूप  कहलाते हैं ।
अग्नि और  सूर्य आदि   को
तत्सम शब्द में गिने जाते हैं ।

ऐसे    शब्द  तद्भव   के होते  ,
जो संस्कृत से निकलकर आते हैं ।
पर रूप  उनके कुछ बदले हुए ,
यथा सूरज ,आग   लखाते  हैं ।

तीसरे रूप देशज होते ,
जो देसी भाषा से निकल कर आते हैं ।
लोटा , पगड़ी आदि शब्द अनेक ,
जो देशज रूप बन छाते   हैं ।

विदेशी   शब्द वैसे  जो हिल मिलकर ,
साथ  हिंदी में समाते   हैं ।
ये हिंदी के प्रतिरूप बनते ,
स्कूल , डॉक्टर शब्द आदि  हिंदी में हिल मिल जाते हैं ।

इन चार प्रकार के शब्दों को
उत्पत्ति के अनुसार बताया हूँ ।
ध्यान रखना सदा  जरूरी है ,
यह आगे की राह सिखाया हूँ ।

अब बात करें रचना  प्रकार से ,
इसमें तीन भेद बताते   हैं ।
रूढ़ , यौगिक , योगरूढ़ को
यथा शब्दों के साथ समझाते हैं ।

रूढ़ रचना का प्रथम भेद है ,
जिसे खंडित करने पर न कोई अर्थ मिले ।
यथा हाथ  , पानी , दाल आदि का
केवल सीधा सीधा अर्थ खिले ।

यौगिक शब्द वह रचना के प्रकार का ,
जिसे खंडित  करने पर भी अर्थ मिले ।
सूर्योदय , पुस्तकालय आदि शब्द भी ,
बिना अर्थ दिए यह कभी न हिले ।

योगरूढ़ वह शब्द है प्यारे ,
जो यौगिक तो है पर रूढ़ रूप बन जाता है ।
यथा पंकज , जलज शब्द ऐसे हैं ,
जो विशेष अर्थ को पाता है ।

इस तरह शब्द के भेद हुए ,
और आगे भी समझाना है ।
हर शब्द की अपनी गरिमा है ,
और आगे भी बहुत बताना है ।

अमरनाथ त्रिवेदी
पूर्व प्रधानाध्यापक
उत्क्रमित उच्चतर माध्यमिक विद्यालय बैंगरा
प्रखंड बंदरा , जिला मुजफ्फरपुर

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